ज़िदगी ने जब भी कभी हमे रुलाना चाहा ...

ज़िदगी ने जब भी कभी हमे रुलाना चाहा
हमने ज़िदगी को हर एक मकसद हसाना चाहा,!!!!!!
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वक्त के साथ चलते चले गये,
ज़िदगी ने हर बार किस्मत का बहाना चाहा,


हम भी खुदार थे खुदारी से जिए,
खता ना की ना बेवजह हमने मनाना चाहा,

जो मेरा हे जो लोटकर सब आयेगा,
अपने सार मे आपनी ज़िदगी को बनाना चाहा

कुछ लिख लिया यू ही बेते बेते,
जब भी अधूरी खवहिशो ने खुद मे जलाना चाहा

वो बचपन था अब सब समझदार कहते,
यही दोर था जब ज़िदगी ने ही ज़िदगी से मिलाना चाहा
P@W@N

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