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मिजाज ये समझा वो आज ज़िदगी का

मुसाफिर ने शहर बदला था एक उम्मीद मे, पर देखो ये शहर ओर भी तन्हा निकला !!!!!!!!!!!! ........................................................... उम्मीद थी आसमा पाने की हरदम, देखो ये करवा कहा से कहा निकला, मुशिक्ल यहा होना लाजमी था, जिसके दरमियना खवहिश का दोर बेपनहा निकला, सोचा था उसने आज वक्त मेरे साथ हे , पर यहा उस मुजरिम का बदला हुआ गवाह निकला मिजाज ये समझा वो आज ज़िदगी का, ज्यादा ही समझना ज़िदगी को यहा अब गुनाह निकला

ज़िदगी जी गयी पुरी होगी हर हसरत समझ कर !!

ज़िदगी जी गयी पुरी होगी हर हसरत समझ कर, जो मिला यहा सब सही जो नही जाने दिया किस्मत समझ कर , आज भी जिसके नसीब हे हवाले रोटी नही , फिर मागा उसने कुछ तूझसे ही ,तुझे कूदरत समझ कर , ये यहा ऐसी ही ज़िदगी हे जनाब , जो मिल रहा हे उसे रख लो दिन की बरकत समझ कर , ज़िदजी एक नशा हे हो गया हो तो हो गया, कुछ नही होगा फिर, जाम पी गया अगर तू शरबत समझ कर, शोक जुनून अपने दरमियान हमेशा ले के चल, यू ही जी हरदम ज़िदगी ,खुद को ज़िदगी की कूरबत समझ कर !!