मैं हजार ख्वाहिशें लेकर बैठा हूं

मैं हजार ख्वाहिशें लेकर बैठा हूं
वो कहता हे अभी और सबर रख,

मुझे अपने घर के हलात मालूम नही,
वो कहता है मेरे शहर की खबर रख

में भूल गया हूं अपने गाव जाना
वो कहता है मुझे हर शहर में घर रख,

निकलने की बात कहता गुजरे कल से
वो कहता है पर शायरी में तो असर रख

उसने देखे कहा है मेरे चोटों के निशान
वो कहता है आज भी ख्वाइशों में शिखर रख

Pawan

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