BACHPAN
एक बचपन का जमाना होता था वक्त बिताने का अपना एक बहाना होता था, जब खेल -खेल मे घर बनाना होता था, गुडडे - गुडियो से घर सजाना होता था, बिन एहसास के पुतलो को खाना खिलाना होता था, इन पलो मे खुशियो का चुराना होता था, पढाई कर बहार खेलने जाना होता था, मम्मी को इसके लिये मनाना होता था, पापा की डाट से पहले घर मे घुस जाना होता था दीदी- भैया से लडाई पर रो जाना होता था, रो कर मम्मी के बांहो मे सो जाना होता था मोसम बदलने का अपना एक नजराना होता था, बारिश मे अपनी नांव बनाकर दुर तक पहुंचाना होता था, कभी नांव को पानी मे से उठाकर ले आना होता था, अपनी दुर नांव पंहुच जाने पर जीत का जश्न मनाना होता था, अपनी मस्ती अपना एक तराना होता था, खेल कुद कर रात को थककर सो जाना होता था, डरावने सपने आने पर मम्मी से लिपट जाना होता था, जब सुबह उठ स्कूल जाना होता था, दादा -दादी से पेसे कमाना होता था उस एक रुपये का अपना एक फंसाना होता था, छोटी-छोटी खुशियो मे जिंदगी को पाना होता था, सच बचपन का अपना ही एक जमाना होता था................................पवन,