एक उम्मीद हर नयी उम्मीद मे आस थी !
एक उम्मीद हर नयी उम्मीद मे आस थी, मै हर दफ़ा हारा पर टूटी कभी ना सास थी, हा मै एक शायर था कवि का कल, मुझमे जो भी बात थी वो बडी खास थी !!!!!! ..................................................... इतना भी सरल ना रहा जिदगी को यहा तक लाना, हर मोके पर यहा इस दिल की आजमाइश् थी चन्द उम्मीदो मे हम जीये के केसे, हजार खावाहिशे छूटी , फिर भी खवाहिश थी, जो लोग यहा मेरा पता पूछने आये थे , उन्हे खुद की मालूम ना हुई पेदाइश् थी, क्या बदला अगर देखु जमाने मे आज, कल भी वही आज भी वही नुमाईश थी यहा दिल किन पर सभाले गये हे, बस वो आखे ,जुलफे ओर कुछ ल्फ़सो की फरमाइश् थी