खवाहिशे वही दिल के कोने मे कही पल रही हे !

वो शरारते वो नजाकत कही खो सी गयी हे,
एक कसूर सा लगता हे यहा समझदार होना !!!
...............................
खवाहिशे वही दिल के कोने मे कही पल रही हे
पर आसान नही राहे ,मजिले अब बदल रही हे,

बदलना ,,अब ज़िदगी का यू भी ये केसा,
गुम सी हसी, जो बेवजह चेहरे पे कल रही हे
अब तो सिर्फ़ यही सोच मे जी रहे सब,अपना क्या?
वो सोचता नादान ज़िदगी यहा तुझसे चल रही हे
शोहरत दोलत यहा किरायेदार हे आज तेरा कल मेरा,
मुझको यकीन हुआ कल की ज़िदगी अब सभल रही हे
एक शायर ज़िदगी के करीब इतना हे शायद,
मालूम नही थमी हे ये ज़िदगी कही निकल रही हे
p@w@n

Comments

Popular posts from this blog

टूटे ख्वाब